उत्तराखंड

तकनीकी और आस्था की डोर के सहारे सुरंग में फंसी 41 जिंदगियां बची, लेकिन फिजां में तैर रहे सवालों के जवाब अभी बाकी

देहरादून। सिलक्यारा में 400 घंटे चले चुनौतीपूर्ण बचाव अभियान में तकनीकी और आस्था की डोर से सहारे सुरंग में फंसी 41 जिंदगियां बचा ली गईं, लेकिन कई ऐसे सवाल अभी फिजां में तैर रहे हैं, जिनके जवाब आने बाकी हैं। सबसे बड़ा सवाल सुरंग निर्माण से जुड़े सुरक्षा मानकों का है। यह तब और भी अहम हो गया है जब सुरंग निर्माण की डीपीआर से लेकर जियो-टेक्निकल आंकड़ों और उनके अनुपालन को लेकर हीलाहवाली की बातें सामने आ रही हैं। हालांकि इन्हें खुले तौर पर कोई स्वीकार नहीं कर रहा है। लेकिन, बचाव कार्य के दौरान रहे सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री जनरल वीके सिंह (सेनि.) और एनएचआइडीसीएल के प्रबंध निदेशक (एमडी) महमूद अहमद परियोजना की जांच कराने की बात कह चुके हैं।

सिलक्यारा की निर्माणाधीन सुरंग में श्रमिकों के फंसने की घटना के बाद से ही यह बात उठने लगी थी कि परियोजना में एस्केप टनल (निकास सुरंग) का प्रविधान क्यों नहीं था। बाद में यह बात भी सामने आई कि डीपीआर में इसका प्रविधान था, लेकिन निर्माण नहीं किया गया। यह सवाल भी उठे हैं कि जब सुरंग में तमाम वीक जोन थे तो उनके पुख्ता ट्रीटमेंट के साथ ही श्रमिकों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम समय पर क्यों नहीं उठाए गए। इसका जवाब आना भी बाकी है कि परियोजना के निर्माण से पहले जियो-टेक्निकल सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक सुरक्षात्मक उपाय किए गए या फिर स्टडी को ही दरकिनार कर दिया गया।

वीके सिंह जब पहली बार राहत एवं बचाव अभियान का जायजा लेने आए तो उन्होंने सुरंग परियोजना की जांच के लिए कमेटी गठित किए जाने की जानकारी दी थी। एनएचआइडीसीएल के प्रबंध निदेशक (एमडी) महमूद अहमद भी यह बात कह चुके हैं कि परियोजना निर्माण से जुड़ी खामी को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। ईपीसी मोड का है कांट्रेक्ट, लग सकता है भारी-भरकम जुर्माना एनएचआइडीसीएल (नेशनल हाइवेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड) ने सिलक्यारा सुरंग बनाने का काम नवयुग कंपनी को ईपीसी (इंजीनियरिंग प्रक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन) मोड में दिया है। जिसका मतलब यह होता है कि निर्माण कंपनी को डिजाइन से लेकर सभी कार्य स्वयं करने होंगे।

ऐसे कार्यों में किसी भी तरह की खामी के लिए निर्माण कंपनी सीधे तौर पर उत्तरदायी होती है। काम को समय पर पूरा करने की भी पूरी बाध्यता होती है। किसी भी तरह ही हीलाहवाली के लिए निर्माण कंपनी पर भारी भरकम जुर्माना लगाए जाने का प्रविधान भी किया जाता है। इस मामले में क्या होता है, यह जांच के परिणामों पर निर्भर करेगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button